Saturday, 30 August 2014

मधुमेह (Diabetes) एवं आयुर्वेद : कारण, लक्षण व उपचार



मधुमेह (डायबिटीज ) नामक रोग में व्यक्ति बार-बार अधिक मात्र में क्लेद युक्त गाढ़ी चिपचिपी मूत्र करता है ,
मधुमेह दो शब्दों को मिलाकर बना है मधु और मेह, मधु यानि मधुर ,मीठा और मेह यानि पेशाब ।
मेहन का अर्थ है मुत्रेंद्रिया जिसके द्वारा मूत्र निसरण (निकलता है ) किया जाता है ....पीड़ित व्यक्ति पुनः पुनः अधिक मात्र में पेशाब करता है ,अत्यधिक थकान और दुर्बलता का अनुभव करता है ।

रक्त में शर्करा की मात्र अत्यधिक बढ़ जाने से शारीर के अंगों पर इसके बहुत सारे दुष्प्रभाव होते हैं -
सामान्य व्यक्ति में आहार से उत्पन्न शर्करा का अग्नाशय में पाचन होता है जिसमे इंसुलिन नामक होर्मोने के सहयोग से चयापचय होता है , लेकिन मधुमेह में अग्नाशय में इंसुलिन के निर्माण के हेतु महत्त्वपूर्ण बीटा सेल नष्ट हो जाते हैं, जिससे इंसुलिन का निर्माण नहीं होता .... कई बार जेनेटिक अब्नोर्मलिटी के कारण इंसुलिन मोलेकुल का रिसेप्टर उसे एक्सेप्ट नहीं करता ....... जिसके कारण शर्करा का उपयोग शारीर में उर्जा उत्पन्न करने के लिए नहीं होता ....और अतिरिक्त शर्करा रक्त में ही रह जाती है जो की खतरनाक है ।

मधुमेह के रोगी का शारीर दुर्बल हो जाता है ,क्लेद की अधिकता से शारीर के धातु (शारीर के मूलभूत तत्त्व रस, रक्त, मांस, इत्यादि ) का गलन होने लगता है .रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक होने के कारण यदि कोई संक्रमण होता है तो वह मुश्किल से ठीक हो पाता है । रक्त में बढ़ी शर्करा जीवाणुओं के बढ़त के लिए उत्तम माध्यम का काम करती है ।

मधुमेह के सामान्य कारण -1.अत्यधिक मात्रा में गरिष्ठ ,घी तेल चिकनाई युक्त आहार , देर में पचने युक्त आहार का सेवन करना ।
2.नए अन्न यानि के एक वर्ष से पहले उगाया हुआ अन्ना नवान्न होता है ,हमेशा एक वर्ष पुराने अनाज का सेवन करें ,क्योंकि नए अन्न में क्लेद की मात्र अधिक होती है जिस से मधुमेह होने की सम्भावना होती है ,मधुमेह के रोगी भी इसका परहेज करें ।
3.अधिक मात्र में गुड ,चावल श्रीखंड इत्यादि का सेवन करना ,आटे के व्यंजन जैसे मठरी बालुशाई इत्यादि ।
4. दिवा स्वप्न यानि की दिन में सोना , यह कफ वर्धक होता है , एक आसन पर अधिक समय तक बैठे रहना , पैदल नहीं चलना, लगातार ए. सी. में बैठे रहना और व्यायाम का अभाव से मधुमेह हो सकता है ।
5. मानसिक कारण जैसे चिंता भय उद्वेग और तनाव ग्रस्त जीवन एक प्रमुख कारण है ।
6. अनुवांशिक कारण भी महत्त्वपूर्ण है ।
7. अधिक मात्रा में शराब , पिज़्ज़ा , बर्गर , देर से पचने वाले आहार का लगातार सेवन ।
इन कारणों से मधुमेह रोग की उत्पत्ति होती है।

उपचार एवं आहार -
1. रोग से सम्बंधित लक्षण नजर आने पर अपने पास के आयुर्वेद के डॉक्टर को दिखाना चाहिए। आयुर्वेद में इस रोग का अच्छा उपचार मौजूद है।
2. इस रोग से बचने के लिए जिन कारणों से यह रोग होता है उनका त्याग करना चाहिए, रोग से पीड़ित व्यक्ति को अपने खून में मौजूद शुगर के लेवल की काम से काम सप्ताह में एक बार जाँच जरूर करनी चाहिए।
3. जामुन , करेला , आमला, गिलोय का सेवन करना चाहिए , पानी अधिक पीना चाहिए , सुबह के समय खुली हवा में टहलना चाहिए। त्रिफला और शिलाजीत का सेवन भी लाभदायक होता है।
4. गोंद, बेसन , सोंठ , हल्दी को मिलाकर लड्डू बना लें इनका सेवन दिन में दो बार करें लड्डू में मीठा न मिलाये , लड्डू को गूंथने के लिए ओलिव आयल या सोयाबीन के तेल का प्रयोग करें।
इन बातों का ध्यान रखकर आप इस रोग से बच सकते है।


लेखक:
डॉ. अभिषेक गोयल 
अशोकनगर, मध्यप्रदेश 

Friday, 29 August 2014

एलर्जी: कारण, लक्षण एवं आयुर्वेद उपचार

एलर्जी: कारण, लक्षण एवं आयुर्वेद उपचार
एलर्जी या अति संवेदनशीलता आज की लाइफ में बहुत तेजी से बढ़ती हुई सेहत की बड़ी परेशानी है कभी कभी एलर्जी गंभीर परेशानी का भी सबब बन जाती है जब हमारा शरीर किसी पदार्थ के प्रति अति संवेदनशीलता दर्शाता है तो इसे  एलर्जी कहा जाता है और जिस पदार्थ के प्रति प्रतिकिर्या दर्शाई जाती है उसे एलर्जन कहा जाता है l

एलर्जी  के कारण –
एलर्जी किसी भी पदार्थ से ,मौसम के बदलाव से या आनुवंशिकता जन्य हो  सकती है एलर्जी के कारणों में धूल ,धुआं ,मिटटी पराग कण, पालतू या अन्य जानवरों के संपर्क में आने से ,सौंदर्य प्रशाधनों से ,कीड़े बर्रे आदि के काटने से,खाद्य पदार्थों से एवं कुछ अंग्रेजी दवाओ के उपयोग से एलर्जी हो सकती है सामान्तया एलर्जी नाक ,आँख ,श्वसन  प्रणाली ,त्वचा  व खान पान से सम्बंधित होती है किन्तु कभी कभी पूरे शरीर में एक साथ भी हो सकती है जो की गंभीर हो सकती है l
 स्थानानुसार  एलर्जी  के  लक्षण  -
  •  नाक    की  एलर्जी -नाक  में  खुजली होना ,छीकें आना ,नाक  बहना ,नाक  बंद होना  या  बार  बार जुकाम  होना आदि l
  • आँख की एलर्जी -आखों में लालिमा ,पानी आना ,जलन होना ,खुजली आदि l
  • श्वसन संस्थान की एलर्जी -इसमें खांसी ,साँस लेने में तकलीफ एवं अस्थमा जैसी गंभीर समस्या हो सकती  है l
  • त्वचा की एलर्जी -त्वचा की एलर्जी काफी कॉमन है और बारिश का मौसम त्वचा की एलर्जी के लिए बहुत ज्यादा    मुफीद है त्वचा की एलर्जी में त्वचा पर खुजली होना ,दाने निकलना ,एक्जिमा ,पित्ती  उछलना आदि होता है l
  • खान पान से एलर्जी -बहुत से लोगों को खाने पीने  की चीजों जैसे दूध ,अंडे ,मछली ,चॉकलेट  आदि से एलर्जी  होती  है l
  • सम्पूर्ण शरीर की एलर्जी -कभी कभी कुछ लोगों में एलर्जी से गंभीर स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और सारे शरीर में  एक साथ गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी स्तिथि में तुरंत हॉस्पिटल लेकर जाना चाहिए l
  • अंग्रेजी दवाओं से एलर्जी-कई अंग्रेजी दवाएं भी एलर्जी का सबब बन जाती हैं जैसे पेनिसिलिन का  इंजेक्शन जिसका रिएक्शन बहुत खतरनाक होता है और मौके पर ही मोत हो जाती है इसके अलावा  दर्द की गोलियां,सल्फा ड्रग्स एवं कुछ एंटीबायोटिक दवाएं भी सामान्य से गंभीर एलर्जी के लक्षण उत्पन्न  कर सकती हैं l
  • मधु मक्खी ततैया आदि का काटना –इनसे भी कुछ लोगों में सिर्फ त्वचा की सूजन और दर्द की  परेशानी होती है जबकि कुछ लोगों को  इमर्जेन्सी में जाना पड़ जाता है l
एलर्जी  से  बचाव - एलर्जी से बचाव ही एलर्जी का सर्वोत्तम इलाज है इसलिए एलर्जी से बचने के लिए इन उपायों का पालन करना चाहिए 1.य़दि आपको एलर्जी है तो सर्वप्रथम ये पता करें की आपको किन किन चीजों से एलर्जी है इसके लिए आप ध्यान  से अपने खान पान और रहन सहन को वाच करें l
  • घर के आस पास गंदगी ना होने दें  l
  • घर में अधिक से  अधिक  खुली और ताजा हवा आने का मार्ग  प्रशस्त करें  l
  • जिन खाद्य  पदार्थों  से एलर्जी है उन्हें न खाएं l
  • एकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं l
  • बाइक चलाते समय मुंह और नाक पर रुमाल बांधे,आँखों पर धूप का अच्छी क़्वालिटी का चश्मा  लगायें l
  • गद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि समय समय पर गरम पानी से धोते रहे l
  • रजाई ,गद्दे ,कम्बल आदि को समय समय पर धूप दिखाते रहे l
  • पालतू  जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें l
  • ज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे l
  • घर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे l
  • धूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो फेस मास्क पहन कर काम करेंl
  • नाक की एलर्जी -जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है ,सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश  खाना भी नासिका एवं साँस की   एलर्जी से बचने में सहायता करता है आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा   में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता है
  • जिन्हे  बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची  कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना  त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी  है इसे किसी आयुर्वेद चिकित्सक की राय से सेवन कर सकते हैं l
सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे  तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं l

Thursday, 28 August 2014

मुंह के छालों के लिए घरेलु नुस्खे

मुंह के छालों के लिए घरेलु नुस्खे 

मुंह में छाले होने का मुख्य कारण कब्ज तथा अजीर्ण है| इसके साथ ही मांस, मछली, अंडा, मिर्च, तेल, सोंठ, गरम मसालों से युक्त भोजन अधिक मात्रा में सेवन करने से मुंह में छाले उभर आते हैं| तेल तथा तेल में तले हुए पदार्थों और बहुत गरम चीजों को खाने से भी यह रोग हो जाता है| गरम पदार्थ मुख की कोमल श्लेष्मिक कला में प्रदाह उत्पन्न कर देते हैं जिससे गरमी का सीधा प्रभाव मुंह के भीतर दिखाई देने लगता है| पेट की गरमी बढ़ जाती है और पाचन-क्रिया ठीक प्रकार से नहीं हो पाती| दूसरे गरमी के कारण पेट में मल सड़ता रहता है| फिर वह गरमी वायु को ऊपर की ओर खिसकाती है जो मुंह में छाले पैदा कर देती है|


पहचानइस रोग में जीभ के किनारों, तालू तथा होंठो के भीतरी भाग में छोटी-छोटी फुंसियां पैदा हो जाती है| ये फुंसियां कभी-कभी छोटी दिखाई देती है तथा तभी बड़ी मालूम पड़ती हैं| इनमें जलन होती है| इनका रंग लाल होता है| इनमें सुई चुभने जैसी पीड़ा होती है| कभी-कभी खुजली भी होने लगती है| कई बार सारा मुख लाल पड़ने के बाद सूज जाता है| यदि रोग बढ़ जाए तो फुंसियों के पकने की नौबत आ जाती है| मुंह में सूजन आने से प्राय: कुछ भी खाना-पीना मुश्किल हो जाता है|

चिकित्सा
  • कत्थे को महीन पीसकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिला लें| फिर इसे छालों पर लगाएं| मुंह झुकाकर लाल नीचे की ओर टपका दें|
  • फूला हुआ सुहागा तथा शहद - दोनों को मिलाकर छालों पर लगाएं|
  • त्रिफला चूर्ण रातो को सोते समय गरम पानी से लेना चाहिए| इससे पेट का कब्ज ढीला पड़ेगा और सुबह मल साफ आएगा| पेट ठीक होते ही छाले अपने-आप सूख जाएंगे|
  • #आंवले का चूर्ण सुबह-शाम 5-5 ग्राम की मात्रा में गरम पानी से लें|
  • रात को सोते समय एक या दो चम्मच #ईसबगोल की भूसी खाकर ऊपर से पानी पी लें|
  • #तुलसी तथा #चमेली के पत्ते चबाकर लाल नीचे टपकाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं|
  • दो चम्मच #शहतूत का शरबत ताजे पानी में डालकर गरारे करें|
  • टमाटर का रस पानी में मिलाकर उससे गरारे करें|
  • साबुत #धनिया को पीसकर चूर्ण बना लें| फिर इस चूर्ण को छालों पर बुरककर लार नीचे गिरा दें|
  • हरा धनिया, सूखा धनिया तथा पुदीना - तीनों 5-5 ग्राम लेकर चटनी बना लें| इस चटनी को जीभ पर लगाकर लाल बाहर गिराते रहें| यह चटनी दिनभर में चार-पांच बार लगाएं|
  • #अमरूद की चार-पांच मुलायम पत्तियों को एक गिलास पानी में उबालें| फिर इस पानी को छानकर कुल्ला करें| इससे मुंह की दुर्गंध भी दूर होती है|
  • भोजन के बाद केवल #सौंफ का पानी पीने से मुंह के छाले सूख जाते हैं| इसके लिए एक गिलास पानी में दो चम्मच सौंफ डालकर औटाएं| फिर पानी को छानकर ठंडा होने के लिए रख दें| यही सौंफ का पानी प्रयोग करें|
  • अंजीर के पेड़ से कच्चे #अंजीरों का दूध इकट्ठा करके छालों पर लगाएं|
  • जायफल को पानी में घिसकर उंगली से जीभ तथा तालू पर लेप करें| लार बाहर निकाल दें|
  • #अरहर की हरी पत्तियों को चबाकर थूक दें| लार पेट में जाने दें| छालों को दूर करने की यह बड़ी कारगर दवा है|
  • #मेहंदी तथा #फिटकिरी - दोनों को बराबर की मात्रा में पीसकर छालों पर लगाएं|
  • लाल #इलायची के छिलकों को सुखाकर पीस लें| फिर इस चूर्ण को पानी में भिगोकर या पानी में पेस्ट बनाकर छालों पर लगाएं|
  • #करेले के रस को पानी में डालकर कुल्ला करने से छाले दूर होते हैं|
  • #मसूर की दाल को आग में भून लें| इसमें समभाग बरेली वाला सफेद कत्था मिलाएं| दोनों को पीसकर मुख में लगाएं| लार नीचे टपका दें|
जौ को आग में जलाकर कोयला कर लें| अब इनको पीस डालें| इसमें दो चुटकी पिसा हुआ कत्था मिलाएं| दोनों का मिश्रित चूर्ण छालों पर लगाएं|
छालों में गाय या भैंस का घी उंगली से लगाएं|
मुलहठी, नीम की पत्तियां तथा मेहंदी की पत्तियां पानी में उबालकर पानी छान लें| फिर इस पानी से गरारे करें|
आम की छाल, पीपल के पेड़ की छाल तथा बबूल की छाल लेकर पानी में औटा लें| फिर इस पानी से बार-बार कुल्ला करें|
बेर के पत्तों को पानी में उबालकर उससे कुल्ला करना चाहिए|
मौलसिरी के पेड़ की छाल को पानी में उबालकर उससे कुल्ला करें|


त्रिफला : एक श्रेष्ठ आयुर्वेदिक औषधि

त्रिफला एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक रासायनिक फ़ार्मुला है जिसमें आंवला, बहेडा और हरड़को बीज निकाल कर समान मात्रा में लिया जाता है। त्रिफला शब्द का शाब्दिक अर्थ है "तीन फल" ।
संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करने वाले व्यक्तियों को ह्रदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्ररोग, पेट के विकार, मोटापा आदि होने की संभावना नहीं होती। यह कोई 20 प्रकार के प्रमेह, विविध कुष्ठरोग, विषमज्वर व #सूजन को नष्ट करता है। अस्थि,  केश,  दाँत व पाचन- संसथान को बलवान बनाता है। इसका नियमित सेवन शरीर को निरामय, सक्षम व फुर्तीला बनाता है।

औषधि के रूप में त्रिफला
1..रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।
2..त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है।
3.इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
4.सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।
5.शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
6.एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
7.त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है।
8.त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
9.चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
10.एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।
11.त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
12.त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
13.त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
14.मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
15.त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
16.त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।
17.5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
18.5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।
19.टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
20.त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
21.त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
22.त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
23.डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।
त्रिफला से कायाकल्प
1.एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।
2.दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।
3.तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।
4.चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है ।
5.पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।
6.छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।
7.सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
8.आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।
9.नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।
10.दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।

धन्वन्तरि स्त्रोतस

धन्वंतरि स्तोत्रम

प्रचलि धन्वंतरी स्तोत्र इस प्रकार से है।
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

धन्वन्तरि स्त्रोतस का नियमित जप करने से रोगो से मुक्ति मिलती है .

आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि


भारतीय पौराणिक दृष्टि से धनतेरस को स्वास्थ्य के देवता का दिवस माना जाता है। भगवान धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवताहैं। भगवान धन्वंतरि से आज के दिन प्रार्थना की जाती है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायुष्य प्रदान करें। 

भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद जगत के प्रणेता तथा वैद्यक शास्त्र के देवता माने जाते हैं। आदिकाल में आयुर्वेद की उत्पत्ति ब्रह्मा से ही मानते हैं। आदि काल के ग्रंथों में रामायण-महाभारत तथा विविध पुराणों की रचना हुई है, जिसमें सभी ग्रंथों ने आयुर्वेदावतरण के प्रसंग में भगवान धन्वंतरि का उल्लेख किया है। 

भगवान धन्वंतरि प्रथम तथा द्वितीय का वर्णन पुराणों के अतिरिक्त आयुर्वेद ग्रंथों में भी छुट-पुट मिलता है। जिसमें आयुर्वेद के आदि ग्रंथों सुश्रुत्र संहिता चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय में विभिन्न रूपों में उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य आयुर्वेदिक ग्रंथों भाव प्रकाश, शार्गधर तथा उनके ही समकालीन अन्य ग्रंथों में आयुर्वेदावतरण का प्रसंग उधृत है। इसमें भगवान धन्वंतरि के संबंध में भी प्रकाश डाला गया है। महाकवि व्यास द्वारा रचित श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार धन्वंतरि को भगवान विष्णु के अंश माना है तथा अवतारों में अवतार कहा गया है। 

महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद भागवत महापुराणादि में यह उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि देव और असुर एक ही पिता कश्यप ऋषि के संतान थे। किंतु इनकी वंशवृद्ध अधिक हो गई थी अतः अधिकारों के लिए परस्पर लड़ा करते थे। वे तीनों ही लोकों पर राज्याधिकार चाहते थे। असुरों या राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य थे जो संजीवनी विद्या के बल से असुरों का जीवितकर लेते थे। इसके अतिरिक्त दैत्य दानव माँसाहारी होने के कारण हृष्ट-पुष्ट स्वस्थ तथा दिव्य शस्त्रों के ज्ञाता थे। अतः युद्ध में देवताओं की मृत्यु अधिक होती थी। 

ND
पुरादेवऽसुरायुद्धेहताश्चशतशोसुराः। 
हेन्यामान्यास्ततो देवाः शतशोऽथसहस्त्रशः। 

गरुड़ और मार्कंडेय पुराणों के अनुसार वेद मंत्रों से अभिमंत्रित होने के कारण वे वैद्य कहलाए। 

विष्णु पुराण के अनुसार धन्वन्तरि दीर्घतथा के पुत्र बताए गए हैं। इसमें बताया गया है वह धन्वंतरि जरा विकारों से रहित देह और इंद्रियों वाला तथा सभी जन्मों में सर्वशास्त्र ज्ञाता है। भगवान नारायण ने उन्हें पूर्व जन्म में यह वरदान दिया था कि काशिराज के वंश में उत्पन्न होकर आयुर्वेद के आठ भाग करोगे और यज्ञ भाग के भोक्ता बनोगे।

इस प्रकार धन्वंतरि की तीन रूपों में उल्लेख मिलता है।
समुद्र मन्थन से उत्पन्न धन्वंतरि प्रथम। 
धन्व के पुत्र धन्वंतरि द्वितीय। 
काशिराज दिवोदास धन्वंतरि तृतीय।