Friday 5 September 2014

गिलोय के गुण व आयुर्वेदिक प्रयोग

गिलोय (अमृता)



गिलोय का वैज्ञानिक नाम है–तिनोस्पोरा कार्डीफोलिया Tinospora cordiofolia। इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली , गुजराती में गालो , मराठी में गुलबेल , तेलगू में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है।
कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पायी जाती है। गिलोय हमारे यहां लगभग सभी जगह पायी जाती है। यह मैदानों, सड़कों के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और दीवारों पर लिपटी हुई दिख जाती है।
अगर आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय लगा सकते हैं । नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है ,इस कारण आयुर्वेद में नीम पर चढ़ी हुई गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है हालाकि अन्य साफ सुथरी जगहों पर लगी हुई गिलोय भी उपयोग में ली जा सकती है
गिलोय को अमृता भी कहा जाता है .यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है , जो इसका प्रयोग करे . कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी , वहां वहां गिलोय उग गई .
आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य चरक ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है। किसी भी प्रकृति के लोग इसे ले सकते हैं क्योंकि यह त्रिदोष को हरने वाली है वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है।
इसकी तासीर गर्म होती है। इसमें प्रचुर मात्रा में एन्टी आक्सीडेन्ट होते हैं।
यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लड़ने, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है। सचमुच यह प्राकृतिक ‘कुनैन’ है।
गिलोय एक रसायन एवं शोधक के रूप में जानी जाती है जो बुढापे को कभी आपके नजदीक नहीं आने देती है । यह शरीर का कायाकल्प कर देने की क्षमता रखती है। गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति रहती है और असमय ही झुर्रियां नहीं पड़ती .
किसी भी प्रकार के रोगाणुओं ,जीवाणुओं आदि से पैदा होने वाली बिमारियों, खून के प्रदूषित होने बहुत पुराने बुखार एवं यकृत की कमजोरी जैसी बिमारियों के लिए यह रामबाण की तरह काम करती है ।
इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है।
इसकी डंडी ( तना ) का ही प्रयोग करते हैं उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है .
डंडी को ऐसे भी चूस सकते है . चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें . हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी .
इसे चूर्ण, छाल, रस और काढ़े के रूप मेंइस्तेमाल किया जाता है और इसके तने को कच्चा भी चबाया जा सकता है।
गिलोय का लिसलिसा पदार्थ सूखा हुआ भी मिलता है . इसे गिलोय सत कहते हैं . इसका आरिष्ट भी मिलता है जिसे अमृतारिष्ट कहते हैं . अगर ताज़ी गिलोय न मिले तो इन्हें भी ले सकते

बुखार में गिलोय के प्रयोग


  • पुराने -जीर्ण ज्वर या ६ दिन से भी अधिक समय से चले आ रहे न टूटने वाले ज्वरों में गिलोय 100 ग्राम अच्छी तरह कुचल कर मिट्टी के बर्तन में 300 -350 मिली पानी में मिलाकर रात भर ढक कर रखते हैं व प्रातः मसल कर छान लेते हैं । 100 ml की मात्रा दिन में तीन बार पीने से जीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है ।
  • ऐसे असाध्य ज्वरों में, जिसके कारण का पता सारे प्रयोग परीक्षणों के बाद भी नहीं चल पाता (पायरेक्सिया ऑफ अननोन ऑरीजन) समूल नष्ट करने का बीड़ा गिलोय ही उठाती है ।
  • २५० ग्राम गिलोय २ लीटर जल में पकाकर जब एक लीटर रह जाए तो इस जल को दिन में तीन बार 300 मिली की मात्रा में देने से असाध्य ज्वर दूर होता है व जीवनशक्ति बढ़ती है ।
  • गिलोय, धनिया, नीम की छाल, और लाल चंदन इन सब को समान मात्रामें मिलाकर काढ़ा बना लें। इस को सुबह शाम सेवन करने से सब प्रकार का ज्वरठीक होता है।
  • शरीर में गर्मी अधिक है तो इसे कूटकर रात को भिगो दें और सवेरे मसलकर शहद या मिश्री मिलाकर पी लें .
  • गिलोय रस में खाण्ड डालकर पीने से पित्त का बुखार ठीक होता है। औरगिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्त का बढ़ना रुकता है।
  • गिलोय का रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें।प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करे इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जातीहै।
  • गिलोय, पीपल की जड़, नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्णके एक चम्मच को रोगी को तथा आधा चम्मच छोटे बच्चे को पानी के साथ सेवन करनेसे ज्वर में लाभ मिलता है।
  • गिलोय, सोंठ, धनियां, चिरायता और मिश्री को सम अनुपात में मिलाकर पीसकरचूर्ण बना कर रोजाना दिन में तीन बार एक चम्मच भर लेने से बुखार में आराममिलता है।
  • गिलोय, कटेरी, सोंठ और अरण्ड की जड़ को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ पहुंचाता है।
  • गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है। औरगिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें इससे बारम्बार होनेवाला बुखार ठीक होता है।
  • गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकरलेने से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है।
  • गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकरकाढ़ा बनाकर सुबह और शाम सेवन करने से वात का ज्वर ठीक हो जाता है

प्लेटलेट के लिए प्रयोग 


  • अगर platelets बहुत कम हो गए हैं , तो चिंता की बात नहीं अलोवेरा का जूस लगभग ४० ml (या गूदा ५ चम्मच ) + ६” गिलोय तना + तीन पत्ते पपीते के + ११ पत्ते तुलसी के + शहद १० ml (यदि शुगर की समस्या न हो तो ) इन सब औषधियों को अच्छे से मिक्सी में पीस कर जूस को छान कर तीन बराबर मात्राओं में दिन में तीन बार पिलायें .......चमत्कारी प्रयोग है.

गिलोय के कुछ अन्य अनुप्रयोग :

बाँझ नर या नारी को गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर खिलाने से वे बाँझपन से मुक्ति पा जाते हैं। गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं। हालाँकि बांझपन में इसके प्रयोग व परिणाम एक शोध का विषय है. इसे रसायन के रूप में शुक्रहीनता दौर्बल्य में भी प्रयोग करते हैं व ऐसा कहा जाता है कि यह शुक्राणुओं के बनने की उनके सक्रिय होने की प्रक्रिया को बढ़ाती है । इस प्रकार यह औषधि एक समग्र कायाकल्प योग है-शोधक भी तथा शक्तिवर्धक भी ।

  • अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ ; पुनर्नवा (साठी; जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं) की जड़ भी कूटकर काढ़ा बनायें और पीयें .
  • कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें . इसका सेवन खाली पेट करने से aplastic anaemia भी ठीक होता है .
  • गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने कालक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होताहै ।
  • गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है।
  • गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है।
  • क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
  • गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
  • एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।
  • प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री केसाथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
  • फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें। इसतेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होतीहै।
  • सुबह शाम गिलोय का दो तीन टेबल स्पून शर्बत पानी में मिलाकर पीने से पसीने से आ रही बदबू का आना बंद हो जाता है।
  • गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल मजबूत होता है, उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है, गिलोय याददाश्त को भी बढाती है।
  • मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
  • गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण सम मात्रा में मिलाकर गुनगुने पानी सेसेवन करने से हृदयशूल में लाभ मिलता है। गिलोय के रस का सेवन करने से दिलकी कमजोरी दूर होती है और दिल के रोग ठीक होते हैं।
  • गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता है और गिलोय, हरड़, बहेड़ा,और आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और इसमें शिलाजीत मिलाकर और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।
  • गिलोय और नागरमोथा, हरड को सम मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना कर चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से मोटापा घटने लगता है।
  • लगभग 10 ग्राम गिलोय के रस में शहद और सेंधानमक (एक-एक ग्राम) मिलाकर, इसे खूब उबाले फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाएं इससे नेत्र विकार ठीक हो जाते हैं।
  • गिलोय का रस आंवले के रस के साथ लेने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है।
  • गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसमें पीपल का चूर्णऔर शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के रोग दूर हो जाते हैं औरआँखों की ज्योति बढ़ जाती हैं।
  • गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए औरसुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजलीसे छुटकारा मिलता है।
  • गिलोय के साथ अरण्डी के तेल का उपयोग करने से पेट की गैस ठीक होती है।
  • श्वेत प्रदर के लिए गिलोय तथा शतावरी का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होताहै।
  • गिलोय के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
  • गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के कारणसे आ रही उल्टी रूक जाती है। गिलोय के रस में शहद मिलाकर दिन में दो तीनबार सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है।
  • गिलोय के तने का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
  • पित्त ज्वर के लिए गिलोय, धनियां, नीम की छाल, चंदन, कुटकी क्वाथ का सेवन लाभकारी है, यह कफ के लिए भी फायदेमंद है।
  • नजला, जुकाम खांसी, बुखार के लिए गिलोय के पत्तों का रस शहद मे मिलाकर दो तीन बार सेवन करने से लाभ होगा।
  • 1 लीटर उबलते हुये पानी मे एक कप गिलोय का रस और 2 चम्मच अनन्तमूल काचूर्ण मिलाकर ठंडा होने पर छान लें। इसका एक कप प्रतिदिन दिन में तीन बारसेवन करें इससे खून साफ होता हैं और कोढ़ ठीक होने लगता है।
  • गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार प्रसूता स्त्री को पिलाने से स्तनों में दूध की कमी होने की शिकायत दूर होती है और बच्चे को स्वस्थ दूधमिलता है।
  • एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव भी ठीक होते है।गिलोय के काढ़े में अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से चरम रोगों में लाभमिलता है खून साफ होता है और गठिया रोग भी ठीक हो जाता है।
  • गिलोय का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से गठिया ठीक हो जाता है।
  • गिलोय और सोंठ सामान मात्रा में लेकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने गठिया रोगों में लाभ मिलता है। या गिलोय का रस तथा त्रिफला आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से घुटने के दर्द में लाभ होता है।
  • गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
  • मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभहोता है।
  • गिलोय के रस को सफेद दाग पर दिन में 2-3 बार लगाइए एक-डेढ़ माह बादअसर दिखाई देने लगेगा ।
  • गिलोय का एक चम्मच चूर्ण या काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है। गिलोय केकाढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
  • गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
  • गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुनाकरके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
  • गिलोय का रस पीने से या गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रदररोग खत्म हो जाता है। या गिलोय और शतावरी को साथ साथ कूट लें फिर एक गिलासपानी में डालकर इसे पकाएं जब काढ़ा आधा रह जाये इसे सुबह-शाम पीयें प्रदररोग ठीक हो जाता है।

मात्रा : गिलोय को चूर्ण के रूप में 5-6 ग्राम, सत् के रूप में 2 ग्राम तक क्वाथ के रूप में 50 से 100 मि. ली.कीमात्रा लाभकारी व संतुलित होती है।
गिलोय ताज़ी न मिलने पर गिलोयघन वटी या गिलोय सत् भी प्रयोग में लाया जा सकता है



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