Friday 7 November 2014

हेपेटाइटिस - बी आयुर्वेदिक चिकित्सा

हेपेटाइटिस - बी आयुर्वेदिक चिकित्सा 





● संचरण ●


- हेपेटाइटिस बी वायरस का संचरण संक्रमित रक्त या शरीर के रक्त युक्त तरल पदार्थ के संपर्क में आने के परिणामस्वरूप होता है।
-संचरण के संभावित रूपों में असुरक्षित यौन संपर्क, रक्त आधान, संदूषित सुइयों और सिरिंजों का दुबारा उपयोग और माँ से बच्चे को प्रसव के दौरान ऊर्ध्वाधर संचरण शामिल हैं।
-यह एड्स से 50 से 100 गुना अधिक संक्रमित होता है। 

हेपेटाइटिस बी के बचाव

• घाव होने पर उसे खुला न छोड़ें। यदि त्वचा कट फट जाए तो उस हिस्से को डिटॉल से साफ करें।
• शराब ना पिएं।
• किसी के साथ अपने टूथब्रश, रेजर, सुई, सिरिंज, नेल फाइल, कैंची या अन्य ऐसी वस्तुएं जो आपके खून के संपर्क में आती हो शेयर न करें।
• नवजात बच्चों को टीका लगावाएं।

शुरुआती लक्षण 

हिपेटाइटिस के शुरुआती लक्षण फ्लू जैसे हो सकते हैं, जिसमे डायरिया, थकान, भूख कम लगना, हल्का बुखार, शरीर मे दर्द, पेट मे दर्द, उल्टी और वजन घटना आदि शामिल है। पीलिया जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं.

हिपेटाइटिस मे आयुर्वेद के नियमों से करें लीवर का बचाव 


-डाइट और लाइफस्टाइल मे बदलाव 
-हॉट, स्पाइसी, ऑयली और हेवी खाने से परहेज करें, वेजिटेरियन खाने को प्राथमिकता दें
-रिफाइंड आटा, पॉलिश किया हुआ चावल (व्हाइट राइस), सरसों का तेल, सरसों के बीज, हींग, मटर, प्रिजर्व्ड़ फूड, केक, पेस्ट्री, चॉकलेट, एल्कोहल और सोडा वाले ड्रिंक से परहेज करें।
-होल व्हीट आटा, ब्राउन राइस का इस्तेमाल बढ़ाएँ, खाने मे केला, आम, टमाटर, पालक, आलू, आंवला, अंगूर, मूली, नींबू, सूखे खजूर, किशमिश, बादाम और इलायची ज्यादा शामिल करें।
-इस हालत मे जरूरत से ज्यादा फिजिकल वर्क न करें। पूरा आराम करें। धूप मे आग के पास देर तक न रहें।

कुछ आयुर्वेदिक योग 


  • चम्मच रोस्टेड बार्ली पाउडर 1 कप पानी मे मिलाएँ। इसमे 1 चम्मच शहद डालें और दिन मे दो बार लें।
  • एक चम्मच तुलसी के पत्ते का पेस्ट एक कप मूली के जूस मे मिलाएँ। इसे दिन मे दो बार 15 से 20 दिनों तक इस्तेमाल करें।
  • एक कप गन्ने का रस लें, इसमे आधा चम्मच तुलसी पत्ते का पेस्ट मिलाएँ और दिन मे दो बार लें। यह ध्यान रखें कि जूस हाइजेनिक तरीके से तैयार किया गया हो। उनमें आमलकी (आंवला), विभीतिकी (बहेड़ा), हरीतिकी (हरड़), अमृता (गुरुच), वासा (अडूसा), तिक्ता (चिरैता), कुटकी, भूनिम्ब (कालमेघ) व निम्ब (नीम) शामिल हैं। बनाएं कैसे - सभी औषध एक समान मात्रा में लेकर उसको चार गुना अधिक मात्रा पानी में उबालते हैं। मसलन संपूर्ण औषध की मात्रा अगर 50 ग्राम है तो उसे 200 मिली पानी में उबाल लेते हैं, जब एक भाग यानी 50 मिली रह जाए तो इसे छानकर सुबह खाली पेट पीते हैं।
- एक माह तक लगातार इस काढ़े के सेवन से नतीजा सामने आ जाता है ।

  • आयुर्वेदिक औषधियां जैसे आरोग्यवर्धिनी, पुनार्नावारिस्ट, कुमार्यासव आदि कुशल आयुर्वेद चिकित्सक के देख रेख में ली जा सकती हैं.

□ अधिक जानकारी के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें □

लेखक: 
डॉ. सुरेन्द्र शर्मा 
कंसलटेंट आयुर्वेद फिजिशियन 
संपर्क: 09827206031

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